मत्स्य क्षेत्र का एक अग्रणी नायक: डॉ. हीरालाल चौधरी
- Aquameen Biosciences Pvt. Ltd.
- 10 जुल॰ 2024
- 3 मिनट पठन

बिहार के एक छोटे से गांव में जन्मे डॉ. हीरालाल चौधरी का जीवन मत्स्य विज्ञान और समुदाय के लिए समर्पण से भरा था। उनका जन्म गरीब किसान परिवार में हुआ था, लेकिन इन कठिन परिस्थितियों ने उन्हें अपने जीवन के लक्ष्य को पाने के लिए प्रेरित किया।
युवा डॉ. हीरालाल चौधरी ने केंद्रीय मीठे जल जलीय कृषि संस्थान (CIFA) में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की, जहाँ उन्होंने भारतीय कार्प प्रजातियों के पालन और प्रजनन पर अपना शोध कार्य किया। इस अभिनव कार्य ने भारतीय मीठे जल जलकृषि के विस्तार के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिससे स्थानीय मछली प्रजातियों पर निर्भरता बढ़ी। अपने शोध और नवाचारों के माध्यम से, चौधरी ने किफायती और पर्यावरण के अनुकूल मछली पालन तकनीकों को विकसित करके छोटे किसानों को सशक्त बनाया। उन्होंने कृषि-मत्स्यपालन एकीकृत प्रणालियों को भी प्रोत्साहित किया, जिसने पारिस्थितिक तंत्र की सेहत को बनाए रखने में मदद की।
डॉ. हीरालाल चौधरी का नेतृत्व केंद्रीय मीठे जल जलीय कृषि संस्थान (CIFA) के निदेशक के रूप में था, जहाँ उन्होंने जलीय पारिस्थितिकी और प्रजाति प्रबंधन पर अग्रणी शोध किया। उनके द्वारा प्रदान की गई वैज्ञानिक सलाह ने नीति निर्माताओं को सशक्त बनाया और प्राकृतिक मछली भंडारों के संरक्षण एवं कुशल प्रबंधन को प्रोत्साहित किया। उनके योगदान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई। वे कई सरकारी एजेंसियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के तकनीकी सलाहकार रहे, जहाँ उन्होंने मत्स्य प्रबंधन और संरक्षण पर वैश्विक नीतियों को आकार देने में मदद की। उनकी अविश्वसनीय प्रतिबद्धता और नेतृत्व ने मत्स्य विज्ञान क्षेत्र में कई पीढ़ियों को प्रेरित किया। उन्होंने हजारों छात्रों और युवा शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित किया, जिनमें से अनेक आज देश भर में मत्स्य विज्ञान और जलकृषि के क्षेत्र में अग्रणी हैं।
डॉ. हीरालाल चौधरी का जीवन पर्यावरण के प्रति सम्मान, ग्रामीण समुदायों के सशक्तीकरण और वैज्ञानिक ज्ञान के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन लाने की प्रेरणा से भरा था। राष्ट्रीय मछली किसान दिवस पर, हम उनकी अमूल्य विरासत को याद करते हैं और उनके सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
आइये हम उनके जीवन से प्रेरित होकर, एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं जहाँ हमारी मत्स्य और जलकृषि प्रणालियां टिकाऊ, न्यायसंगत और पर्यावरण के अनुकूल हों। यह उनका सर्वोत्तम सम्मान होगा और हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन भी।
डॉ. हीरालाल चौधरी का महत्वपूर्ण योगदान मछली पालन तकनीकों के विकास में रहा है। उनके शोध और अनुसंधान से निम्नलिखित प्रमुख योगदान हुए :
स्वच्छ जल प्रबंधन तकनीकों का विकास: उन्होंने मछली पालन के लिए स्वच्छ और उपयुक्त जल प्रबंधन तकनीकों को विकसित किया। इसमें जल शोधन, पुर्नचक्रण और कार्बन फिल्टरिंग प्रणालियों का उपयोग शामिल है।
पोषण और आहार तकनीकों का परिमार्जन: उन्होंने मछली के आहार और पोषण के अनुकूल तकनीकों को विकसित किया। इसमें उच्च पोषक तत्वों युक्त कृत्रिम आहार, विटामिन और खनिज पूरक शामिल हैं।
बीज उत्पादन एवं नर्सरी प्रबंधन: उन्होंने मछली बीज उत्पादन और नर्सरी प्रबंधन तकनीकों को बेहतर बनाया। इसमें अंडों और बच्चों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाना, पोषण और स्वास्थ्य देखभाल शामिल है।
रोग प्रबंधन में जैविक विधियों का उपयोग: उन्होंने मछली रोगों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक उपचारों की बजाय जैविक और प्राकृतिक उपचार विधियों का प्रयोग किया।
संख्या प्रबंधन और उत्पादकता बढ़ाना: उन्होंने मछली उत्पादन के लिए संख्या प्रबंधन और उत्पादकता बढ़ाने की कुशल तकनीकों को अपनाया।
इन नवीन तकनीकों के कारण मछली पालन में उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता में काफी सुधार हुआ है।
डॉक्टर हीरालाल चौधरी को उनके नवीन और सतत मछली पालन प्रथाओं के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया है:
राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार (2020): उन्हें पर्यावरण संरक्षण और जैविक विविधता के प्रति उनके अग्रणी योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया गया।
एशिया पैसिफिक कृषि नवाचार पुरस्कार (2021): उनकी जल प्रबंधन और जैविक कृषि प्रथाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन (FAO) का उत्कृष्टता पुरस्कार (2022): उनके सतत मछली पालन प्रथाओं को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली और उन्हें FAO द्वारा यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
गांधी पर्यावरण पुरस्कार (2023): उनके मछली पालन में पर्यावरण संरक्षण और जैविक विविधता के प्रयासों को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इन पुरस्कारों ने न केवल डॉक्टर चौधरी के योगदान को मान्यता दी, बल्कि उनकी प्रथाओं को अन्य मछली पालकों के लिए एक प्रेरणास्रोत भी बना दिया है। यह उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रतिफल है।
आइये आज हम भी डॉक्टर हीरालाल चौधरी जी एवं उनके द्वारा मछली पालन सम्बंधित कठिनाइयों में समर्पित उनकी कर्मठता को याद रखते हुए इस राष्ट्रीय मत्स्य पालक दिवस पर उनके द्वारा किये गए समर्पण को आगे भड़ाते हुए संकल्प करते है की मत्स्य पालन को वैज्ञानिक सोच और पारम्परिक तरीको को अपनाते हुए प्रौद्योगिकी संलयन कर अपनी और अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ाये और मत्स्य पालन क्षेत्र में अपना परचम फहराए।
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